योगी आदित्यनाथ: एक उग्र भगवाधारी

2017 में योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश की सत्ता में आना और भारत के सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले प्रदेश में आदित्यनाथ का संपूर्ण वर्चस्व.
 
नेहा दीक्षित

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2014 में अपनी वेबसाइट www.yogiadityanath.in पर अपने लिखे निबंध महाशक्ति – भारतीय शक्ति के संदर्भ में, के अंदर आदित्यनाथ लिखते हैं कि महिलाएं मुक्त छोड़े जाने और स्वतंत्र होने के लिए सक्षम नहीं हैं.

आदित्यनाथ महिलाओं को पुरुषों के द्वारा रक्षा, उनको नियंत्रित और फेमिनिज्म जैसे पश्चिमी विचारों से बचाए जाने में पूरी तरह विश्वास करते हैं, क्योंकि उससे सामाजिक अनुशासन खतरे में पड़ सकता है.

वह लिखते हैं, “अस्तु, हमारे शास्त्रों में जहां स्त्री की इतनी महिमा वर्णित की गई है वहां उसकी महत्ता और मर्यादा को देखते हुए उसे सदा संरक्षण देने की बात भी कही गई है. जैसे ऊर्जा को यदि खुला और अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो वह व्यर्थ और विनाशक भी हो सकता है वैसे ही शक्ति स्वरूपा स्त्री को भी स्वतंत्रता की नहीं उपयोगी रूप में संरक्षण और चैनेलाइजेशन की आवश्यकता है.”

महिलाओं के प्रति उनका दृष्टिकोण हिंदुत्व की विचारधारा में रचा बसा है. एक महिला को केवल एक मां, बेटी या बहन के रूप में ही देखा जाता है, एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में नहीं.

वह लिखते हैं, “क्योंकि इस प्रकार संरक्षित स्त्री शक्ति की ऊर्जा ही महापुरुषों की जन्मदात्री और धात्री बनती है तथा आवश्यकतानुसार स्वयं भी घर से रणभूमि तक प्रकट होकर आसुरी शक्तियों का संहार करती है… अन्यथा पश्चिम से आ रही नारी स्वतंत्रता की आंधी अंदर से उन्हें उखाड़ कर कुएं से निकालकर खाई में डाल देगी और इस प्रकार घर परिवार और समाज के निर्माण में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और मातृभूमि को परम वैभव तक पहुंचाने में उनकी अपेक्षित भूमिका बाधित होगी.”

उनके विचार अप्रत्याशित रूप से नाजी जर्मनी में आदर्श महिला के विचार से मेल खाते हैं, जिनका अपने घर के बाहर कोई कैरियर नहीं होता था और उनकी सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी एक अच्छी पत्नी बनना, आर्यन नस्लों की जनसंख्या बढ़ाना और ‘पितृभूमि’ के लिए लड़ने वाले बेटों को बड़ा करना था.

वे संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत सीटें देने के लिए प्रस्तावित महिला आरक्षण बिल के भी विरोध में हैं. उनके अनुसार इससे परिवार की संरचना में उनकी भूमिका पर असर पड़ेगा. वह लिखते हैं, “यह तय कीजिए कि स्त्री को सक्रिय राजनीति में, बाहरी दुनियादारी में, पुरुषों के समान हिस्सेदारी देने से कहीं हमारे परिवार की मां, बहन, बेटी अपने स्वरूप और महत्व को तो नहीं खो देंगी.”

परंतु महिलाओं के कई चुनावों में एक अलग चुनावी धड़े के रूप में भूमिका निभाई जाने के कारण, 2014 में प्रकाशित होने के बाद यह लेख अब वेबसाइट से हटा दिया गया है.

एनसीआरबी के डाटा के अनुसार 2012 में, पूरे भारत के अंदर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, इनमें से आधे मामले उत्तर प्रदेश से थे.

आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रीकाल के दौरान सभी जातियों और धर्मों की महिलाओं ने बुरे से बुरे अपराध देखे.

जून 2017 में आदित्यनाथ के शपथ लेने के 3 महीने बाद ही उन्नाव जिले में भाजपा के एक विधायक कुलदीप सेंगर ने एक 17 साल की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया. दो साल तक मुख्यमंत्री ने सेंगर को संरक्षण दिया जबकि पीड़ित परिवार ने लगातार खतरों को झेला. न्याय पाने की जद्दोजहद में पीड़िता ने मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने संज्ञान नहीं लिया. इसके बजाय उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया गया और तत्पश्चात पुलिस हिरासत में उनकी मौत हो गई. उनके परिवार पर बार-बार हमले हुए उसके चाचा गिरफ्तार हुए, परिवार की महिलाएं ट्रक से एक्सीडेंट में मारी गई और उसमें पीड़िता को खुद और उनके वकील गंभीर रूप से घायल हुए. जब इस मामले का संज्ञान उच्चतम न्यायालय ने लिया, सामाजिक संगठनों ने प्रदर्शन किए और विपक्ष के दलों ने संसद में इस मुद्दे को उठाया, तब जाकर कहीं सेंगर की गिरफ्तारी हुई और दिसंबर 2019 में उन्हें सजा हुई.

इस घटना के नौ महीने के भीतर ही सितंबर 2020 में एक 19 वर्षीय दलित महिला के साथ सवर्ण जाति के चार पुरुषों ने सामूहिक बलात्कार किया. यह घटना लखनऊ से 380 किलोमीटर दूर हाथरस जिले में हुई. इस घटना के बाद 10 दिनों के भीतर कोई गिरफ्तारी नहीं हुई थी.

उसके साथ हुई हिंसा की वजह से उसकी रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई जिससे उसका पूरा शरीर पंगु हो गया, उसकी जीभ काट दी गई. दो हफ्ते बाद दिल्ली के एक अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया. राज्य सरकार ने, पीड़िता के परिवार की रजामंदी के बिना आधी रात को जबरदस्ती पीड़िता के शरीर का क्रियाकर्म कर दिया.

इस मामले को मीडिया ने विस्तार से कवर किया जिसकी वजह से पूरे देश में प्रदर्शन हुए. आदित्यनाथ ने दावा किया कि हाथरस घटना का फायदा, उनकी सरकार के विकास से क्षुब्ध लोग उठा रहे हैं और पूरे प्रदेश में साजिश करके दंगा भड़काना चाहते हैं.

एक हफ्ते के अंदर ही, इस घटना पर रोशनी डालने की वजह से, कई लोगों पर राज्य में शांति भंग करने, राजद्रोह, सांप्रदायिक नफरत की साजिश और भड़काने के 19 मामले दर्ज कर लिए गए. इसमें पत्रकार सिद्दकी कप्पन की गिरफ्तारी भी शामिल है, जो इस केस को कवर करने जा रहे थे. उनके ऊपर दुर्दांत कानून यूएपीए लगा दिया गया और वह पिछले 16 महीनों से जेल में हैं.

उनकी सरकार ने कांसेप्ट आर नाम की मुंबई में स्थित एक पीआर कंपनी की सेवाएं ली जिसने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में यह विचार फैलाने की कोशिश की कि ‘हाथरस लड़की का बलात्कार नहीं हुआ’ था.

पूर्व सांसद और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सवादी की पोलित ब्यूरो की सदस्य सुभाषिनी अली कहती हैं, “वह महिलाओं की प्रगति और सशक्तिकरण में रुचि नहीं रखते. उनकी रूचि तभी जागती है जब एक हिंदू महिला किसी मुसलमान पुरुष के साथ होती है.”

2009 में लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान आदित्यनाथ ने एक भाषण में कहा, “अगर वह एक हिंदू लड़की उठाएंगे, तो हम सौ मुसलमान लड़कियां उठाएंगे.”

आदित्यनाथ ने खुलकर हिंदू महिलाओं के मुस्लिम पुरुषों के साथ प्रेम संबंधों का विरोध किया है, वह इसे लव जिहाद कहते हैं.

इस थ्योरी की राज्य की कई एजेंसियों ने जांच की है और इस प्रकार के सुनियोजित प्रयास का कोई भी सबूत नहीं मिला है. यह विचार सांप्रदायिक तो है ही उसके साथ-साथ यह हिंदू महिलाओं की समझ का हनन करता है, उनकी संप्रभुता, हक, रजामंदी और चुनाव के अधिकार को नकारता है.

2017 में मुख्यमंत्री बनने के कुछ समय बाद ही, उन्होंने “एंटी रोमियो दल” का गठन किया, जो सार्वजनिक जगहों पर युवा महिलाओं और पुरुषों को नैतिकता के नाम पर निशाना बनाते थे, और महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के नाम पर यह जानने के लिए उनके पहचान पत्र देखते थे कि कहीं हिंदू महिला मुस्लिम पुरुष को डेट तो नहीं कर रही. 22 मार्च 2017 से 30 नवंबर 2020 के बीच इन “एंटी रोमियो दलों” ने 14,454 लोगों को गिरफ्तार किया.

नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 लागू किया. योगी आदित्यनाथ सरकार के द्वारा राज्य में महिलाओं की सुरक्षा के लिए चलाए जा रहे अभियान “मिशन शक्ति” के कुछ ही दिनों बाद इसे पारित किया गया. इसे आम तौर पर “लव जिहाद कानून” के नाम से जाना जाता है.

इस कानून के अंतर्गत धर्म परिवर्तन एक गैर जमानती अपराध बन जाता है जिसमें 10 साल तक की सजा हो सकती है अगर ऐसा बहला-फुसलाकर या लालच देकर किया गया हो. इस कानून के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में विवाह के लिए धर्म परिवर्तन भी जिलाधिकारी के लिए मंजूर किया जाना आवश्यक है.

दिसंबर 2021 में, लव जिहाद कानून के अंदर उत्तर प्रदेश में पहली सजा हुई, जब कानपुर में एक युवा मुस्लिम पुरुष पर 10 साल के कारावास और 30,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया.

सुभाषिनी अली कहती हैं, “यह मुस्लिम पुरुषों को गिरफ्तार करने और हिंदू महिलाओं को नियंत्रित करने का एक हथियार है, जिससे वे संपत्ति के रूप में देखने वाले समाज में अपने विवाह का निर्णय खुद न ले सकें.”

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मई 2021 में हिंदी अखबार दैनिक भास्कर ने गंगा नदी के किनारे सैकड़ों बेनाम शवों पर रिपोर्ट की. उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान बड़ी संख्या में मौतें हुई थीं. दो महीने बाद, देश भर में भास्कर के कई दफ्तरों पर आयकर विभाग के छापे पड़े. विपक्षी दलों ने इसे मीडिया को डराने और दबाने का प्रयास बताया.

किसी एक महत्वाकांक्षी तानाशाह की तरह वह सूचना के मुक्त आदान प्रदान पर नियंत्रण रखते हैं और विचारों की स्वतंत्रता पर रोक आलोचना के सभी संभावित माध्यमों पर पकड़ बना कर रखते हैं. उनकी सरकार के दौरान सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना करने की वजह से 200 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.

डॉ कफील खान गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में शिशु रोग विभाग में लेक्चरर थे. 27 अगस्त 2017 को, अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म हो जाने के कारण 63 बच्चों की मौत हो गई. इन मौतों पर पूरे देश का ध्यान गया. डॉक्टर खान ने अपनी जेब से पैसा खर्च कर ऑक्सीजन के सिलेंडर खरीदे जिससे स्थिति को संभाला जा सके और उन्हें मीडिया ने एक हीरो की तरह सम्मान दिया. तीन दिनों तक उत्तर प्रदेश सरकार ऑक्सीजन की कमी की वजह से किसी भी मौत के होने से इनकार करती रही. उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए जिनमें रासुका भी था.

उनको गिरफ्तार किया गया और 500 से ज्यादा दिनों तक उत्तर प्रदेश के कई जिलों में रखा गया और आखिरकार उन्हें उनकी नौकरी से निकाल दिया गया.

डॉक्टर खान कहते हैं, “उनके चारों ओर एक छद्म उल्लास का माहौल गढ़ दिया गया है, और जो कोई भी उनके प्रति खराब खबरें या आलोचना लाता है उसे कुचल दिया जाता है.”

2021 में महामारी के दौरान आदित्यनाथ ने ऑक्सीजन की कमी को जाहिर करने वाले कई अस्पतालों के खिलाफ रासुका के अंतर्गत कार्यवाही और संपत्ति कुर्क करने के आदेश दिए.

मई 2020 में, उन्होंने प्रदेश में सभी प्रमुख कानूनों को रद्द कर दिया जिससे बेहतर काम करने की परिस्थितियों और यूनियन बनाना मुश्किल हो गया, और लोगों को तुरंत रखना और निकालना आसान हो गया.

उन्होंने उत्तर प्रदेश के कई शहरों के उर्दू नाम बदल दिए मुगलसराय को पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर, इलाहाबाद को प्रयागराज और फैजाबाद का अयोध्या नाम हो गया. सरकार के अधिकतम संसाधन मंदिरों को बनाने में खर्च किया गया है.

उनके मुख्यमंत्री के रूप में प्रशासन के अंतर्गत यूपी की प्रति व्यक्ति आय दो हजार 1920 में भारत की औसत आय की आधी ही थी, और राज्य 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में 32वें नंबर पर था. अनुमान कहते हैं कि उत्तर प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद या जीएसडीपी, केवल 1.9 5% सालाना की योगिक वृद्धि दर से बढ़ा जोकि पिछली राज्य सरकारों के कार्यकाल की दर 6.92% से कम है. कुल बेरोजगारी ढाई गुना बढ़ गई है और 2012 की तुलना में युवाओं में बेरोजगारी लगभग पांच गुना है.

मार्च 2020 में, आदित्यनाथ में सीएए कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को नामित-अपमानित करने के लिए उनके नाम, तस्वीरें और पते पूरे लखनऊ में बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर लगा दिए, जिससे उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा भी खतरे में पड़ी. यह कानून, पड़ोसी देशों के इस्लाम को छोड़कर सभी धर्मों के मानने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता की पेशकश करता है. 78 वर्षीय दारापुरी जिन्हें तीन हफ्ते के लिए गिरफ्तार कर लिया गया, कहते हैं, “हमें खाना, दवाएं और चश्मा तक नहीं दिया गया.”

इसके प्रतिरोध से लड़ने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने दो करोड़ अमेरिकी डॉलर विज्ञापनों पर खर्च किए.

यूपी को अक्सर “पुलिस राज”, “जंगल राज”, “बुलेट राज” कहा जाता है, आदित्यनाथ को उनकी सरकार के भय और हिंसा की नीति के चलते “बुलडोजधरनाथ” कहा जाता है.

दारापुरी कहते हैं, “यह दमन के सबसे बुरे कालखंडों में से एक है. यह कानून के राज के बजाय, राज का कानून है.

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उमैर कहते हैं, “एक सांसद के तौर पर गोरखपुर के विकास में उनका कोई प्रभाव नहीं रहा. उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए उपचुनावों में उनकी पार्टी हार गई क्योंकि वह अपने वादों को पूरा नहीं कर सके.”

फिर भी वह भाजपा के चुनावों में स्टार प्रचारक हैं.

2016 में उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के चुने जाने पर प्रशंसा की थी जिसे उनके द्वारा वैश्विक दक्षिणपंथी राजनीति में सहयोगी और मित्र ढूंढने की तरह देखा गया.

वह हिंदू राष्ट्र वादियों के अखंड भारत के सपने के दृढ़ प्रणेता हैं, जिसका उन्होंने यूपी की विधानसभा में भी समर्थन किया. यह विचार मानता है कि आज के भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत, श्रीलंका और म्यांमार, मिलकर एक बड़ा हिंदू राष्ट्र हैं. इसके भारतीय उपमहाद्वीप में वैश्विक राजनीति के लिए बड़े अर्थ हैं.

कई लोग अब उन्हें प्रधानमंत्री मोदी जिनके नेतृत्व में गुजरात में अल्पसंख्यकों के खिलाफ सबसे बुरे दंगे हुए, जिसने उन्हें पिछले दो दशकों से हिंदुत्व का चहेता बना दिया की तुलना में हिंदुत्व के लिए कहीं ज्यादा कट्टरवादी और समर्पित नेता के रूप में देखते हैं.

लोग आदित्यनाथ को मोदी का उत्तराधिकारी बोल रहे हैं.

दारापुरी कहते हैं, “अगर वह सफल होते हैं तो हमारा संविधान बाहर फेंक दिया जाएगा और हिंदू प्रधानता लागू कर दी जाएगी. तब कोई जनतंत्र नहीं होगा केवल तानाशाही होगी,”

उन्होंने तानाशाह कैसे बने इसकी एक कुंजी तैयार कर दी है जब लोग आप से डरते हैं, तो आपका उन पर नियंत्रण है. उनकी सरकार मानवाधिकारों का हनन करने से नहीं झिझकती और दंडित व ‘शुद्धी’ के लिए तत्पर रहती है. नए कानूनों, दंडात्मक कदमों, बल और नीतियों से वह हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को लागू कर रहे हैं.

उनके चारों तरफ तैयार किया गया आभामंडल किसी को यकीन दिलाने या तर्क के लिए नहीं है. इसके बजाय जो भी उनके नेतृत्व के खिलाफ जाता है, सवाल उठाता है उसको नष्ट करने के लिए है. इस हद तक कि लोग जानते हैं कि उनकी निगरानी हो रही है, और वह खुद ही अपने को काबू में रखते हैं.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, देश की करीब 27% आबादी, अर्थात दुनिया में सबसे बड़ी संख्या में लोग भारत में बहुआयामी गरीबी में रहते हैं.

सुभाषिनी कहती हैं, “उनके जीवन का प्रक्षेपण राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लोगों के लिए अब एक गाइड है जो यह सीख गए हैं कि सांप्रदायिक जहर और विकासहीनता, उन्नति का रास्ता है.”

एक हिंदू सन्यासी के रूप में, जो राम जन्मभूमि मॉडल को वाराणसी और मथुरा शहरों में दोहराने का वादा कर रहा है, आज उनका वर्चस्व संवैधानिक सीमाओं के परे जा चुका है.

सुशील कहते हैं, “उत्तर प्रदेश एक सामाजिक और आर्थिक आपातकाल की स्थिति में रहा है. अगर वह (योगी) राष्ट्रीय मंच पर आते हैं, तो वह इन्हीं तरीकों का इस्तेमाल कर, भारत को एकरूप हिंदू समाज – जिसकी एक ही पूजा पद्धति, एक ही भाषा, और एक ही विचारधारा होगी, में बदलने के लिए इस्तेमाल करेंगे.”

Published by Newslaundry Hindi on Feb 17, 22.
Original link: https://hindi.newslaundry.com/2022/02/17/up-assembly-election-2002-yogi-adityanath-a-fiery-saffron-bearer
In English: https://www.nehadixit.in/2022/04/yogi-adityanath-militant-monk.html
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